सजय जेल गया लेकिन निवेशकों को पैसा नहीं मिला
संजय भाटी जेल चला गया। सवाल उठता है कि लाखों लोगों को अरबों का चूना लगा कर ऐसे ही? जो हालात दिख रहे हैं उसे देखते हुए तो बिल्कुल भी नहीं। पूरी सोची समझी रणनीति के तहत बाइट बोट के महानिदेशक संजय भाटी ने पुलिस की बजाय अदालत में समर्पण कर दिया। अड्डतीस से ज्यादा मुकदमें दर्ज होने के बावजूद पुलिस मौन धारण किये हुए थी। स्वयं पुलिस के आला अफसर बता रहे थे कि अभी तस्दीक की जा रही है कि कहीं संजय भाटी के खिलाफ कोई साजिश तो नहीं रची जा रही ? क्या एक ही गैंग है जो इस महाघोटाले को अंजाम दे रहा है या फिर अन्य लोग भी गैंग बनाकर लोगों को ठग रहे हैं। 38 से ज्यादा मुकदमें दर्ज होने के बावजूद ऐसी बात करना भले ही हास्यास्पद लगता हो लेकिन हकीकत यहीं है। अब सवाल उठ रहा है कि आखिर क्या कारण बने कि संजय भाटी को आत्मसमर्पण करना पड़ा ? पुलिस के किस दबाव में ? चर्चा यह भी है कि संजय ने अपनी टीम के खास लोगों के साथ मिलकर समर्पण की पूरी योजना बनायी और जब उसे यह आश्वासन मिल गया कि उसके परिवार का अहित नहीं होने दिया जायेगा तो उसने समर्पण कर दिया।
योजना बनाकर जेल गया संजय
बहारहाल, एक बार फिर से साबित हो गया है कि कानून का शिकंजा गर्दन की मोटाई देख कर ही कसा जाता है। आम आदमी तो नपाई में ही दम तोड़ देता है। अलबत्ता आज, तयशुदा कार्यक्रम के तहत गली गली में शोर हैं संजय भाटी चोर हैं जैसे नारे लगाते हुए हजारों पीड़ितों ने दिल्ली पुलिस मुख्यालय से पैदल जुलूस निकाला और जंतर मंतर पर धरना दिया। इस धरने के माध्यम से उन्होंने अपनी न्याय की आवाज उठाई, कुछ इस तरह कि शायद प्रदेश व देश के हुकुमरान उनकी आवाज सुन लें। पौंजी व चेन सिस्टम पर आधारित यह घोटाला नया नहीं हैं। इससे पहले भी लोग अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई अन्य कंपनियों में गंवा चुके हैं। स्पीक एशिया के बाद सोशल ट्रेड भी इसी चेन सिस्टम पर आधारित घोटाला था। स्पीक एशिया चूना लगाकर भाग गई जबकि सोशल ट्रेड निदेशक अनुभव मित्तल फरारी से पहले गिरफ्तार हो गया। वह अभी जेल की सलाखों के पीछे हैं और जमानत पर रिहा होने के इंतजार में हैं जबकि इसी तर्ज पर वेबवर्क ने काम किया और करीब पांच सौ करोड़ रुपये का चूना लोगों को लगा दिया। वेबवर्क के निदेशक अनुराग गर्ग गिरफ्तार हुआ औऱ जमानत पर रिहा होकर गायब हो गया। इस मामले की जांच सीबीआई और ईडी के स्तर पर चल रही है। अब बात करते हैं संजय भाटी की। एक फाइनेंस कंपनी से शुरूआत कर संजय भाटी व उसकी टीम के दिमाग में खुरापात सूझी औऱ उसने गर्वित इनोवेटिव प्रमोटर्स लि. नामक कंपनी का गठन कर दिया। इस कंपनी के बैनर तले ही बाइक बोट शुरू की गई। जैसा ही भारतीय बड़े ही भोले होते हैं बड़ी संख्या में लोग लालच में उसकी बातों में आ गए और अपना कड़ी मेहनत से कमाया हुआ धन लूटा बैठे। संजय भाटी व उसके सिपहसलाहकार विजय पाल कसाना, राजेश भारद्वाज,ने विनोद कुमा, कर्णपाल सिंह, राजेश सिंह, रेखा रानी, हरीश कुमार,विनोद कुमार, विशाल कुमार, ललित कुमार, रवींद्र कुमार, भूदेव, संजय गोयल,लोकेंद्र सिंह, पुष्पेंद्र सिंह आदि को कंपनी का निदेशक बनाकर घोटाले की योजना का खूब प्रचार प्रसार किया।
बड़े पुलिस अफसरों ने दिखाई थी हरी झंडी
मेरठ में ही पुलिस के एक आला अफसर ने हरी झंडी दिखा कर बाइक बोट की शुरूआत की। बड़ी संख्या में लोगों को बेवकूफ बनाकर मोटी धनराशि जमा की गई। देखते देखते ही संजय भाटी एंड कंपनी करोड़पति औऱ फिर अरबपति बन गई। जिन लोगों ने छोटा लेकिन मोटा लालच किया था वह सिर्फ दो किश्त ही पा सके। शोर शराबा हुआ तो संजय ने एक साल बाद के चेक लोगों को थमा दिये। मरता क्या न करता की तर्ज पर लोगों ने चेक लिये लेकिन वह समझ रहे थे कि उनकी किस्मत के साथ खेल हो चुका है। इस कारण संजय व उसके सिपहसलाकारों के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने का सिलसिला चल निकला। 38 से ज्यादा मुकदमें संजय के खिलाफ दर्ज हो गये, धरना प्रदर्शन शुरू हो गये, हाय हाय औऱ मुर्दाबाद के नारे लगने लगे लेकिन उत्तर प्रदेश की इमानदार पुलिस के कानों में जैसे तेल पड़ा हुआ था, उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। समझा जा सकता था कि संजय के हाथ जिला मुख्यालय, पुुलिस रेंज से बाहर निकलते हुए लखनऊ तक लंबे हो चुके थे।