मेरठ के परिवार ने पेश की अनूठी मिसाल-


हमारी बेटी छोरो से कम है क्या ?


सोच बदली तो जैसे नजारा ही बदल गया। सोच का वह दायरा भी जिसने दुनिया की दूसरी आबादी को दोयम दर्जे पर रखा हुआ था। या फिर ये कि अगले जनम मुझे बिटिया न कीजो...समय ने करवट ली और दुनिया तेजी से आगे निकल गयी। साथ ही नन्हीं परी के जन्म लेते ही इस सोच ने भी जन्म ले लिया कि हमारी बेटी छोरो से कम हैं क्या ? समाज में यही संदेश दे रहा है मेरठ का यह परिवार, जिसने घर में आई पहली बेटी का ऐसा स्वागत किया जिसे देख कर और सोच कर बहू के आंसू भी नहीं थमे कि अब बेटी होने पर कोई किसी को उस नजर से नहीं देखेगा जो लंबे दशकों से जमाना देखता चला आ रहा था।


यहां हम बात कर रहे हैं पढ़े लिखे समाज के एक ऐसे परिवार की जिसका मुखिया मूलचंद शर्मा हैं। उनके पहले बेटी हुई और उसके बाद बेटा। बेटी की शादी के बाद बेटे दीपक शर्मा की स्वाति शर्मा से भव्य तरीके से शादी हुई। समय गुजरा और स्वाति उम्मीद से हो हुई। यह वह उम्मीद थी जो समाज को एक नया रास्ता दिखाने की तरफ परवान चढ़ रही थी। फिर वह समय भी आया जब स्वाति ने एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया। मेरे घर आई एक नन्हीं परी सरीखा गीत कानों में सभी के गूंज गया। चारों तरफ देखते ही देखते खुशी का माहौल बन गया। जैसा अमूमन होता है परिवार में किसी के चेहरे पर इस बात की शिकन न थी कि लड़की हुई हैं। अस्पताल से बच्ची व उसकी मां को बेहद प्यार, लाड़ दुलार और सम्मान के साथ घर लाया गया। इनके स्वागत के लिये घर को दुल्हन की तरह ही सजाया गया था। बच्ची को भी फूलों से सजाया गया था। देख कर लग रहा था कि नन्हीं सी जान अपने इस तरह का स्वागत को देख मन ही मन फूली न समा रही हो। घर के भीतर पहुंचे तो सजावट व परिजनों का लाड़ प्यार पाकर स्वाति अपने खुशी के आंसू रोक नहीं पायी। वह समझ नहीं पा रही थी कि उसका यह स्वागत उस समय में किया जा रहा है जहां अभी भी कुछ घरों या परिवारों में लड़की के जन्म को अभिशाप के रूप में देखा जाता है। आइये पहले सुनते हैं परिवार के मुखिया मूलचंद शर्मा को वह नन्हीं परी का स्वागत करते हुए क्या बता रहे हैं।