राष्ट्रपति ने कहा कि हिंसा से देश कमजोर होता है

फर्स्ट बाइट इंडिया, 31 जनवरी 20


संसद का बजट सत्र आज से शुरू हो रहा है। बजट सत्र का पहला चरण 11 फरवरी तक और दूसरा चरण दो मार्च से तीन अप्रैल तक चलेगा।  मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट 1 फरवरी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश करेंगी। आज बजट सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण से हुई। सत्र की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह चाहते हैं कि सत्र में आर्थिक मसलों पर चर्चा हो। संबोधन के दौरान जब राष्ट्रपति ने नागरिकता संशोधन ऐक्ट (CAA) का जिक्र किया तो सत्ता पक्ष के सांसदों ने पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जमकर डेस्क थपथपाईं। इस दौरान, करीब एक मिनट तक तालियां बजती रहीं। राष्ट्रपति ने जैसे ही अपने अभिभाषण में कहा कि विभाजन के बाद बने माहौल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि हिंदू और सिख जो पाकिस्तान में नहीं रहना चाहते हैं, वे भारत आ सकते हैं। उन्हें सामान्य जीवन मुहैया कराना भारत सरकार का कर्तव्य है। उनके यह बोलते ही  केंद्रीय कक्ष में मौजूद सत्ता पक्ष के सासंदों ने जमकर मेजें थपथपाईं। 


महात्मा गांधी की इच्छा को पूरा किया- कोविंद


राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नागरिकता संशोधन कानून का जिक्र करते हुए कहा कि विरोध के नाम पर हिंसा देश को कमजोर करती है। सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून बनाकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की इच्छा को पूरा किया है। राष्ट्रपति के इतना कहते ही संसद तालियों से गूज उठा। सत्ता पक्ष काफी देर तक तालियां बजाता रहा. वहीं कुछ ही पलों में विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया। कुछ देर के लिए राष्ट्रपति के अभिभाषण में रुकावट भी पैदा हुईं।


राष्ट्र निर्माताओं की इच्छा का सम्मान करनाहमारा दायित्वकोविंद


राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा, ‘’विभाजन के बाद बने माहौल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि पाकिस्तान के हिंदू और सिख, जो वहां नहीं रहना चाहते, वे भारत आ सकते हैं। उन्हें सामान्य जीवन मुहैया कराना भारत सरकार का कर्तव्य है। बापू के इसी विचार को हमने आगे बढ़ाया है। 


किसी भी पंथ का व्यक्ति भारत का नागरिक बन सकता है- कोविंद


रामनाथ कोविंद ने कहा, ‘’सरकार यह पुन: स्पष्ट करती है कि भारत में आस्था रखने वाले और भारत की नागरिकता लेने के इच्छुक दुनिया के सभी पंथों के व्यक्तियों के लिए जो प्रक्रियाएं पहले थीं, वे आज भी वैसी ही हैं. किसी भी पंथ का व्यक्ति इन प्रक्रियाओं को पूरा करके, भारत का नागरिक बन सकता है. शरणार्थियों को नागरिकता देने से किसी क्षेत्र और विशेषकर नॉर्थ ईस्ट पर कोई सांस्कृतिक प्रभाव न पड़े, इसके लिए भी सरकार ने कई प्रावधान किए हैं.’।