तो ऐसे करती है पुलिस खेल, देशद्रोह की धारा तक हटा दी


मेरठ- पुरानी कहावत है लेकिन पुलिस विभाग का चोली दामन जैसा साथ कभी नहीं छूटता...यही कि पुलिस सांप का रस्सी बना सकती है और रस्सी का सांप भी। मेरठ के ग्राम खजूरी में भी ऐसा ही हुआ। हत्या के एक मामले में गवाह व पुलिस को दिये बयान में आरोपी बता रहे हैं कि पाकिस्तान जिंदाबाद व हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते हए उन्होंने छत पर खड़े एक व्यक्ति को गोली मार दी लेकिन पुलिस ने चार्जशीट में बता दिया है कि वहां ऐसी कोई नारेबाजी नहीं हुई। पुलिस ने धाराओं का खेल करते हुए धारा 302 को 304 मे भी तरमीम कर दिया।  पुलिस ने यह सारा खेल उन बयानों को आधार बनाते हुए  किया है जो बयान गवाहों ने दिये ही नहीं। यानी पीड़ित पक्ष का खुला आरोप है कि ये बयान परीक्षितगढ़ के एसओ ने घर बैठकर उनसे मिले बैगर ही लिख लिये हैं।


23 नवम्बर को खजूरी में हुआ था बवाल

यहां हम जिस प्रकरण का जिक्र कर रहे हैं उसने दो माह पूर्व परीक्षितगढ़ थानान्तगर्त खजूरी गांव में खासा बवाल खड़ा कर दिया था। प्रमुख अखबारों में खबरें प्रकाशित हुई कि पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाजी करने वालों ने एक ग्रामीण की जान ले ली। पुलिस ने देशद्रोह का मुकदमा भी दर्ज किया था। दरअसल, पुलिस महानिरीक्षक मेरठ परिक्षेत्र को दिये एक शिकायती पत्र में अमर  सिंह की पुत्री प्रीति ने आरोप लगाया कि गत 23 नवम्बर 19 की रात  अरबाज पुत्र पप्पू आदि करीब 19-20 लोगों ने उनके खजूरी स्थित घर के आगे पाकिस्तान जिंदाबाद के नारेबाजी करते हुए जमकर फायरिंग की जिससे उनके पिता की मौके पर ही गोली लगने से मौत हो गई। इस पर ग्रामीणों ने फायरिंग करने वाले युवाओं को घेर लिया और पिटाई करतेअरवाज, फिरोज, अजहर, हिमांशु, सुधीर अनवार को पुलिस के हवाले कर दिया और पुलिस ने हत्या व देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करते हुए सभी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। ग्रामीणों ने उन वाहनों में भी तोड़फोड़ की जिनसे सभी हमलावर वहां आये थे। ये सभी वाहन क्षतिग्रस्त हालात में थाने में जमा हैं। जमानत की कोशिश हुई तो धारा 302 के चलते जमानत रद्द हो गई। आरोप है कि इसके चलते दोषियों को कोर्ट से राहत दिलाने के लिये पुलिस ने खेल कर दिया।  पुलिस ने धारा 302 को 304 यानी गैर इरादतन हत्या को तरमीम कर दिया साथ ही यह भी बता दिया कि वहां पाकिस्तान के समर्थन में कोई नारेबाजी नहीं हुई है। 

 

केस डायरी में पुलिस ने अपराधियों का अपराध स्वीकारा

   

इससे पहले पुलिस ने अपनी जो केस डायरी कोर्ट में दाखिल की उसके मुताबिक अरबाज ने अपना अपराध स्वीकारते हुए बयान दर्ज कराया कि 23 नवम्बर को सुधीर की स्कार्पियों में वे घूम रहे थे। खजूरी गांव के पास उनकी कार गांव के ही किसी युवक की कार से टकरा गई। जिस पर कहासुनी व मारपीट हो गई। ग्रामीणों को आता देख वे वहां से निकल गये और दानिश, नवाजिश, सलीम कुरैशी, आबिद, दिलदार, इंतजार, सलीम अनवार को लेकर पुनः खजूरी पहुंचे और शिव मंदिर के पास उस युवक से गालीगलौच की जिससे कार की टक्कर हुई थी। भीड़ जमा होती देख उन्होंने पाकिस्तान जिंदाबाद हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए फायरिंग कर दी। एक गोली इस नारेबाजी का विरोध कर रहे अमर सिंह को जा लगी जिससे उसकी मौत हो गई। उन लोगों ने भागने की कोशिश की तो ग्रामीणों ने अरबाज, फिरोज, अजहर, हिमांशु व सुधीर को पकड़ लिया जबकि बाकी भाग निकले। पुलिस के मुताबिक यही बयान अरबाज के अलावा फिरोज पुत्र अबरार,हिमांशु, सुधीर, अजहर ने भी पुलिस को दिये। यानी पुलिस को दिये अथवा पुलिस ने दर्ज किये उनके बयान में न सिर्फ फायरिंग व उससे एक व्यक्ति की मौत और पाकिस्तान के समर्थन व हिंदुस्तान के विरोध में नारेबाजी की बात स्वीकार की है।

 

बेटी का आऱोप -पुलिस हत्याभियुक्तों को बचाने में लगी है

 

यहां  मारे गये अमर सिंह की पुत्री प्रीति ने सवाल किया है कि या तो तब पुलिस ने आरोपियों के गलत बयान दर्ज किये थे या फिर वह अब उसने आरोपियों से साठगांठ कर उन्हें बचाने की रूपरेखा तैयार की है। धारा 302 हटाना व देशविरोधी नारों को आरोपियों द्वारा स्वीकारना व बाद में पुलिस द्वारा उन्हें अस्वीकार करना कहीं न कहीं पुलिस की मिलीभगत की ओर इशारा करने के लिये काफी है।

 

बयान लिये नहीं लेकिन दर्ज कर लिये थानाध्यक्ष ने

 

इस संपूर्ण प्रकरण का एक दिलचस्प व गंभीर पहलू यह है कि एसओ परीक्षितगढ़  कैलाश चंद ने मनसरोहर मेरठ स्थित प्रीति के आवास पर जाकर बयान लेने की बात केस डायरी में की है जबकि प्रीति का कहना है कि थानाध्यक्ष कभी उनके घर आये ही नहीं, जो बयान दिखाये जा रहे हैं वे फर्जी और हत्याभियुक्तों को लाभ पहुंचाने वाले हैं। इस आशय की शिकायत पीड़ित परिवार ने पुलिस महानिरीक्षक व एसएसपी से भी की है। प्रीति व भाई अमित कश्यप का कहना है कि आईजी ने 304 को 302 करने के निर्देश थानाध्यक्ष को दे दिये हैं लेकिन थानाध्यक्ष का कहना है कि उन्हें अभी ऐसा कोई आदेश नहीं मिला है। पीड़िता का यह भी आरोप है कि एसएसपी या तो मिलते नहीं या फिर बिना कुछ सुने प्रार्थना पत्र पर कुछ लिख कर उन्हें आगे बढ़ा देते हैं।